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माँ बाप ही जीवन के पहले गुरु होते है.....

जब हम माँ की गोदी से बाहर आए तो हमारे मम्मी पापा ने हमारी हर एक इच्छा ख़ुशी का पूरा ख्याल रखा और उसको सम्मान दिया. अंगुली पकड़कर चलना सिखाया अपने कंधों पर बिठाकर स्कूल लेकर गये. खिलौने से लेकर हर वह चीज दी जो हमें बड़ी प्रिय थी. विडम्बना तो देखिये हम थोड़ों बड़े क्या हो जाते हैं अपने ही पेरेंट्स को यह कहकर चुप करा देते हैं कि आपकों क्या पता आप जानते ही क्या हैं. भले मानस यदि वो नहीं जानते तो तुम कैसे जानते हो, जिस इन्सान ने आपकों अंगुली पकड़कर खड़े होना और चलना सिखाया आज उसी इन्सान से कहते हैं आपकों क्या पता.

बालपन में हम किसी जिद्द या ख्वाइश को लेकर रोते थे तो किसी तरह वे हमें वो वस्तु दिलाते थे. क्योंकि कोई भी माँ बाप अपनी सन्तान की आँखों में आंसू नहीं देखना चाहता हैं. कमबख्त वे ही संताने जिन्हें माँ बाप ने बड़े लाड प्यार से बड़ा किया, वे उन्हें रोने के लिए, दर बदर भटकने के लिए विवश का देते हैं. हमारे पहले मार्गदर्शक माता-पिता ही होते हैं, यदि हम उनका साथ छोड़ देते हैं तो जंगल में पर्यटक यदि गाइड को मिस कर जाए तो क्या होगा वे भटक जाएगे, यही कुछ हमारे साथ ही होगा.

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